??बन्शी धुनि कबहुँ परेगी कान??
बन्शी धुनि कबहुँ परेगी कान,
भ्रमर गूँज सुनिबे में आवे, ताते बडहिं न मान,
योग न बनहिं न भजन बनावहिं कैसेहुँ धरहुँ जापे सान,
क्षण-क्षण बीते भारी विपति में, काज हुँ बनहि न लान,
एकहुँ काज न बनहि गोसाई निकरि जात अब प्रान,
ध्यान धरंहुँ हनुमत प्रभु तुम्हरो, छेड़ि देउ अब तान,
काज सवारहुँ एकहि बार में स्वर्ण वरन हनुमान,
‘अभिषेक’ पड़ो दुआर तिहारे, अंजनि सुत बलवान ।।
***अभिषेक पाराशर***