??गगन वीथिका से उतरी क्या सौम्य परी हो तुम???
गगन वीथिका से उतरी क्या सौम्य परी हो तुम?
या फिर सूर्य किरण का गुच्छ जो गिरा धरा पर,
ओज बिखेरे हर कण पर, मानस मन पर भी,
चित्र उकेरे भिन्न भिन्न, लगे सजीव सुनहरे भी।।1।।
गगन वीथिका……………
या फिर चिड़ियों का दल जो सतरंगी कहलाए,
एक एक रंग अपना उस दल में महत्व बतलाए,
स्वतन्त्रता का असली सन्देश सिखलातें भी,
ध्वनि उपजाते भिन्न भिन्न, जो मन को हर्षाते भी।।2।।
गगन वीथिका……………
या फिर ममतामयी माँ हो, जो पुण्यमयी कहलाती है,
जिसके पावन स्पर्श से सौ बीमारी भी कट जाती हैं,
ईश्वर ने ममता का रूप सँजोया है,माँ की रचना में
शब्द कोश टटोला भी,शब्द न बनते माँ की व्याख्या में, ।।3।।
गगन वीथिका……………
##अभिषेक पाराशर##