🌻🌻🌸”इतना क्यों बहका रहे हो,अपने अन्दाज पर”🌻🌻🌸
इतना क्यों बहका रहे हो,अपने अन्दाज पर,
हर दी गई अपनी सुन्दर सी पहचान पर।।1।।
किस्मत के फूल क्या हैं, तुम ही बताओगे,
नज़र न मिल सकेंगीं ,क्यों तुम ही जताओगे,
हर मोड़ पर आई तेरी हर याद पर,
इतना क्यों बहका रहे हो,अपने अन्दाज पर
हर दी गई अपनी सुन्दर सी पहचान पर।।2।।
तुम्हारे लिए एक हँसी नज़्म बन जाऊँगा,
तुम गा सकोगे ऐसे गीत बन जाऊँगा,
मैं माहिर तो नहीं जो समझूँ तेरे रुआब,
मरता हूँ मैं तेरे नाज़ुक मिज़ाज पर,
इतना क्यों बहका रहे हो,अपने अन्दाज पर
हर दी गई अपनी सुन्दर सी पहचान पर।।3।।
तेरी संग चलूँगा तो शोर तो होगा,
तुझमें फना रहूँ,मेरा नसीब यही होगा,
बहती हुई नदी के जल की तरह,
पैबस्त हो जाऊँ आखिर में,
तेरे इस बहर-ए-ज़माल पर,
इतना क्यों बहका रहे हो,अपने अन्दाज पर,
हर दी गई अपनी सुन्दर सी पहचान पर।।4।।
©अभिषेक: पाराशरः
बहर ए ज़माल-सुन्दरता का समुद्र