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21 Apr 2022 · 1 min read

🌺🌺धर्म: च सम्प्रदायवाद: च🏵️🏵️

सम्प्रदायिकाय कटुधर्मभावाय वर्तमान् समये एकमात्रं ‘इस्लामधर्म’इति एव न व्यवहार्य:।ये सनातनीजनाः स्वधर्मस्य परिपालनं विपरीतानि प्रकाराणि कुर्वन्ति तु ते अपि पूर्णतया व्यवहार्य: एतेषु।
अत्र प्रसंगे एव कथनं अपि आवश्यकम् यत् इस्लामधर्मस्य पालनकर्तारः सम्यक् प्रकारेण स्वधर्मस्य परिपालनं कुर्वन्ति कुत्रचित् कापि परिस्थित्याम्।यदा यत् सनातनी जनाः स्ववस्त्रावरणानां स्वभाषानां याः स्वसंस्कृत्या: परिपूर्णा: एतम् अपि नष्ट-भ्रष्ट: कुर्वन् संलग्ना:।एषः सुष्ठु न प्रतीयते।अन्याः जनाः या: यत् अन्य धर्मै: स्वाचरणं सम्यक् प्रकारेण परिपालनं कुर्वन् सन्ति।एतस्मिन् समस्तप्रकरणे कर्नाटकस्य राज्यस्य आशये वयं सनातनीजनाः अशुध्दित्वं व्यवहारे आनयं स्म:।

सर्वधर्मान् परित्यज्य: मामेकं शरणं व्रज:।
अहं त्वां सर्व पापेभ्यो: मोक्षयिष्यामि मा शुचः। (श्री म. भ. गी.-18.66)

©अभिषेक: पाराशरः

Language: Sanskrit
Tag: Quotation
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