??अनन्त श्री युक्त पूज्य गुरुदेव के नाम की व्याख्या??
पूज्य गुरुदेव के नाम की विशद व्याख्या का प्रयास मेरे द्वारा किया गया है। जिस पर मैं पहले कुछ पंक्तियाँ अपनी क्षमा प्रार्थना के लिए अर्पित करता हूँ। चूँकि गुरु सत्ता की व्याख्या इतनी सरल और आसान नहीं है। परन्तु यह मेरा छोटा सा प्रयास है। गुरुदेव तथा विद्वत जन सम्भवतः जरूर क्षमा करेंगे।
गुरु शब्द की व्याख्या अलौकिक है,
शुचि साधक, सिद्ध बतावत हैं।।
इह छोटी सी व्याख्या क्या कर दइ,
यह खलु ”अभिषेक” इतरावतु है।।
कर विनम्र जुड़ाऊ, करूं विनती,
यह दासु अशीषु चहावतु है।।
यदि होइ परी , कैसिउ गलती,
करबद्ध परो धोक लगावतु है।।
वि-
वि से विद्वान, विजय रथ राम जी के,
विश्व प्रतिपालक, विराट रूप मानिये।।
विराग की है मूर्ति, विज्ञान में विशारद हैं,
विरुद्ध अधर्म के, विवेकमान जानिए।।
दे-
दे से देवतुल्य, देवप्रिय, देवराज, देवर्षि,
देदीप्यमान, देवसेव्य नित्य मानिए।।
ह-
ह से हनुमान, हंस, हरि, हरिजन प्रिय,
हिरण्य गर्भ, हर्षित, हृषिकेश हंकारिए।।
नन्दिनी-
नन्दिनी में स्वयं माँ गंगा का स्वरुप लिए,
अर्द्ध न और न का अर्थ नन्द नन्दन उच्चारिए।।
न्दि में इ का अर्थ इडा से लिया गया है,
और द का अर्थ दयावान ही उच्चारिए।।
नी के अर्थ में स्वयं देहधारी हैनीतिशास्त्र ने,
इसलिए गुरुदेव को शुक्र कवि नित्य मानिए।।
शरण-
श से शब्दब्रह्म, शीलवान, शिष्य शोक हरने वाले,
र से रामभक्त, रमाभक्त और रामभद्र ध्यानिए।।
जैसे कृष्ण में ण का अर्थ निवृत्ति सूचक लिया गया है,
ठीक वही ण का अर्थ, यहाँ साधु लोग मानिए।।
??क्षमा प्रार्थना? ?
(यह कार्य गुरुदेव की कृपा के बिना सम्भव नहीं था)
जे विशेषि भली उपयोग करी, गुरुनाम महान की व्याख्या मइ।
का इन सगरेन तें पावन गुरुनाम की महिमा पूरन होइ जावें।।
नेति-नेति वेद पुराण कहैं, किन मुख तें शेष सहस या शारद गावें,
चतुरानन, शंकर वेद पढें, पर गुरु नाम की व्याख्या में असम्भव पावें।।
जेइ उपयोग करी जा जड़ ”अभिषेक”,निरो मूड महामंडित कहो जावें।
जाके मूड में कूट के भूसा भरी,जि काज का बिनु गुरु कृपा के होइ जावें।।
###अभिषेक पाराशर ###