🌷मनोरथ🌷
🌷मनोरथ🌷
रंग-बिरंगे ही, मनोरथ बसे;
हरेक प्राणी के , रग-रग में;
हर मनोरथ सदा, पूरे होते;
सबके कभी , यही जग में।
कुछ मनोरथ , दिखावे की;
कुछ है , निज पहनावे की;
रख मनोरथ , तू ‘ज्ञान’ की;
इच्छा न हो,झूठी शान की।
कहीं मनोरथ , दमित होते;
कहीं मनोरथ, भ्रमित होते;
गुरु ज्ञान से,मनोरथ पालो;
निज कर्म को , तू न टालो।
देश प्रेम की, मनोरथ सही;
स्वार्थी इच्छा, जगे न कहीं;
प्रेमीमन भी, मनोरथ जागे;
घृणित मनोरथ, सब त्यागे।
निज मन में है,एक मनोरथ;
पूरे हों, हर सपनों के तीरथ;
मनोरथ कल्याणकारी दिखे;
विधाता, यही मनोरथ लिखे।
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#स्वरचित_सह_मौलिक;
……..✍️पंकज ‘कर्ण’
……………कटिहार।।