️ रेगिस्तान ️
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रेगिस्तान ©
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सोना-सी माटी,सोना-सो मैदान
कतरो फूडरो लागे,यो रेगिस्तान
मुट्ठी भर माटी,यूँ कोई रोकण चाव
करल्यो खूब जतन,पण फिसळ ही जाव
खूब निहारु धोरा टिब्बा,दूर-दूर यूँ नज़र पसार
जी गद-गद होव,मिल शान्ति अपार |
दोघड़ तिघड़,उठा सिर पर
पग उभाण,पसीनो तरबतर
छोरी-छापरी, और बिन्दणी
मील कोस सूं ,ल्यावं पाणी
पाणी यो अमृत, बडो है मोल
बून्द बून्द अनमोल,खूब है तोल |
उंटा रा कारवाँ, दिख साँझ – सवेर
रांग-रंगीला साज-सजीला,चाले धीर- धीर
चाले पगडंडी-पगडंडी, एकदूजा क पाछ
तप्ती धूप मां पार करावं, यो रेत रो राछ |
कठे कठे जांव, यूँ दो पग
सुनसान मां, एक अकेलो
कठे जांव है, ऊंट डगमग
ना कोई साथ, ना कोई बात
गुमसुम चाल, है दिन-रात |
रोज बण और रोज बुझण
टिब्बा, धोरा,और तरंगित मैदान
आज अठे और काल बठे
दिन-रात बदळ, आन आराम कठे
या सोना-सी भूलभूलैया
ना दिख इकी ,कोई छोर-तलैया
मानो बालु संग आंधी,खेल रास-रसईया |
दूर बस्या सारा, घर और गाँव
ना दिखरी,दूर-दूर तक छाँव
सूना पड़्या है,सारा गेला
जाण कठे है,लोगाँ रा मैळा
रीता पड़्या है,कूवाँ और ठाण |
सूखा पड़्या सब, खेत खलिहाण |
पिया गया कमाण, दूर परदेस
कर इंतज़ार, कब मिल सन्देश
उडीक दिनरात,ल्याव उदासी
तस्वीर उँकी,आंख्या मां साजी
ज्यूँ आव ख़त, होव घणी राजी
गाव विरह गीत, जताव नाराजी
“उड़-उड़ रे,म्हारा काळा र कागला..
कद म्हारा पीवजी,घर आसी…….?”
दूर सुदूर सूं ,आवं सैलानी
कुछ देशी और कई विदेशी
धोरा टिब्बा निहारतां,कर ऊंट सवारी
आनंद उठावं,लोक नृत्य-संगीत रो
कलाकार संग,नाच बारी-बारी
पिंव चिलम, कर हुक्को-पान ,
और खांव दाल-बाटी-चूरमो
या धोरा री धरती,म्हारी जान
नज़र उतारूँ,लगा एक टीको सूरमो |
सीमा पर तैनात, वीर सिपाही
रक्षा कर म्हारी,सब फौज़ी भाई
ई बाळू री कसम, सब जण खाई
काँटीला तारां सूं है, बॉर्डर बणायी
दुश्मणा री कर, दिन-रात खिंचाई
नमन करुँ मिल्या, इसा देश-शैदाई
गर्विली हूँ, वीर धरा पर आयी |
या धरती,बाळू और धोरा री
या धरती, वीर सपूतां री
मरू – थार महोत्सव री
वीरांगना अमृता विश्नोई री
या धरती म्हारी आन-बान है
राज-पाठ शानो-शोखत री
गहरी – उंडी खान है |
भोळा भाळा,लोग अठयाँका
भोळी सूरत, मीठी बोली का
लोग रंगीला, साज सजीला |
सतरंगी पहरावणों,
जीव न लुभावणों|
कैर- तारा- जवार भांत
पेर घाघरा चोळी क साथ |
और लहरिया री लूगड़ी
धोती, कुर्तो और मौजड़ी
पेर पांच भात री पागड़ी
बिंदी, मिंदी, सिन्दूर साथ
गहणाँ सूं लबालब,पग और हाथ |
लोग बदळगा, बोल बदळगा
देश बदळगा, भेष बदळगा
लोगां रा परिवेश बदळगा
पण ये ना,कदये भी बदळया
संस्कृति न सदा, संजोई राखी
यो परिवेश है,आंको साखी
या म्हारी रेगिस्तान री, असली सूरत
हिंदुस्तान न दर्शाती, म्हारी राजस्थान री मूरत |
या है म्हारी धोराँ री धरती,री वाचा
नखराळा गोरबंद – देश, री गाथा |
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स्वरचित एवं
मौलिक कविता
लेखिका :-
©✍️ सुजाता कुमारी सैनी “मिटाँवा”
लेखन की तिथि :- 28 मई 2021
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