️ ऐ शहर तुम्हें ️
✍️ ऐ शहर तुम्हें ✍️
ऐ ! शहर बहुत गर्व और अभिमान था न तुम्हें,
तुम साधन-संम्पन और सभ्य होने का,
शहर तुम्हें अभिमान है कि
मेरे पास रोजी-रोटी और रोजगार है,
हमने मानकी यह सब ठीक है,
तुम सदा चलते रहते हो,
चाहे दिन हो या रात हो,
हरदम भागते रहते हो,
किसी भी शहरवासी के पास
थोड़ी सी फुर्सत नहीं है,
तुम्हारे अंदर रोज़ी है-रोजगार है
दो जून की रोटी भी है
हर कोई रोज़ी के लिए
तुम्हारी ओर रुख करता है
लेकिन–
इस महामारी कोरोना में जो लगा लॉक डाउन,
इस लॉक डाउन से तुम्हारी
हकीकत का पता चल गया,
लोग रोजी-रोटी और रोजगार को
ठुकरा कर
तुम्हें छोड़कर लोग पैदल ही
गाँव की ओर चल दिए,
क्योंकि–
तुम्हारे अंदर दिल नहीं,
तुम्हारे पास अपनत्व नहीं,
तुम दर्द बांट नहीं सकता,
तुम प्यार लुटा नहीं सकता,
केवल और केवल तुम रुपये-पैसों के पीछे ही भागते हो,
झूठी शानो-शौकत के दिखावे में दौड़ते रहते हो,
पर
याद रखना ऐ शहर तुम एक बात
हम मजदूरों से तुम हो
तुमसे हम मजदूर नहीं है !!
✍️ चेतन दास वैष्णव ✍️
गामड़ी नारायण
बाँसवाड़ा
राजस्थान
23/01/021