️⭐अभी हार नहीं मानूँगा️⭐
सधे धैर्य से संयम रखकर,
प्रतिक्षण पथ पर सम्भल सम्भलकर,
हृदय में अप्रितम भाव जगाकर,
युद्ध भूमि पर कण्टक क्यों न मिलें,
विजय का अन्वेषण कर डालूँगा,
अभी हार नहीं मानूँगा।।1।।
मनः सृष्ट,कल्पित बातों को,
बीत गई काली रातों को,
स्नेह पाश से पड़ी लकीरें,
तीक्ष्ण,वक्र, स्थिर क्यों न मिलें,
विजय का अन्वेषण कर डालूँगा,
अभी हार नहीं मानूँगा।।2।।
मौन गीत की अंतिम वेला में,
निष्ठुरता की ढाल बनाकर,
सिक्त मुख पर श्रम बिन्दु से,
और नयन से जल क्यों न गिरे,
विजय का अन्वेषण कर डालूँगा,
अभी हार नहीं मानूँगा।।3।।
पर्वत से गिरते झरने से,
प्रकृति में बहती शीत पवन से,
सदा प्रकाशित होते रवि से,
रोज उमड़ती शिक्षा को लेकर,
विजय का अन्वेषण कर डालूँगा,
अभी हार नहीं मानूँगा।।4।।
(31 मई-साँप सीढ़ी का खेल हैं,काटा साँप 98 पर, पहुँच गए 13 पर)
##अभिषेक पाराशर##