【14】 गर्मी और हालात
जून – जुलाई का मौंसम, विकराल आग सा होता है
जो भी गुजरे इस मौंसम से, खूब पसीने ढ़ोता है
जून जुलाई ने ………….
{1} गाँव गया मैं कड़ी धूप में, खेत में कृषक को पाया
तपता रहा तन धूप उसका, तन पे पसीने का साया
गर्मी बन गई इतनी निर्दयी, फसल की सूख गई काया
करता नहीं आराम वह, मेहनत करते हर पल पाया
मेहनत करता वही अपनी, निश्चित मंजिल पाता है
जून जुलाई ने ………….
{2} झुलसे पेड़ों के पत्ते, धरती बनी ताता- ताया
जीव फिरे मारा- मारा, जैसे – तैसे छाया पाया
आग लपट सी चले हवायें, उबल रही जल की काया
कहां से आई इतनी आग, ये सब परमेश्वर की माया
गर्मी के मौंसम में आना – जाना, सुबह संजोता है
जून जुलाई ने ………….
{3} दर- दर भटके जल को पंक्षी, मौत का साया है छाया
किल्लत मची हुई पानी की, पशु पंक्षी जल कहाँ पाया
कुछने प्यास से प्राण गंवाए, कोई जान बचा पाया
जान गई कितनों की जल बिन, मानव क्या कुछ कर पाया
मानव बुध्दिमान जीव है, क्यों स्वार्थी बन रोता है
जून जुलाई ने …………..
{4} पशु पक्षी बेघर बे साधन, इन्हें कहाँ जल मिल पाया
नाँदा इन्सा सोच जरा क्या, तू इनको जल भर पाया
पशु पंक्षी दे तुझे दुआएँ, जल लाकर जो तू प्याया
जैसा करो मिलेगा वैसा, बदलेगी जीवन काया
निःस्वारथ जो काम करे, वह धर्म का हार पिरोता है
जून जुलाई ने …………..
{5} पूछूँ में हर एक मानव से, व्यर्थ में जल क्यों फैलाया
व्यर्थ में जल फैलाने से ही, जल का संकट मण्डराया
जल है तो ही कल है मानव, ये ही क्यों न समझ पाया
व्यर्थ बहागे पानी तो, संकट बस आया – आया
व्यर्थ बहे न पानी प्रण ले, क्यों इन्सानियत खोता है
जून जुलाई ने ………….
सीखः- हमें जल को व्यर्थ न बहाकर, असाह जीवों को पीने के जल का प्रबंध करना चाहिए।
Arise DGRJ { Khaimsingh Saini }
M.A, B.Ed from University of Rajasthan
Mob. 9266034598