【 जब हुई बरसात आँगन में,वो बीते दिन याद आए】
जब हुई बरसात आँगन में, वो बीते दिन याद आए।
जो दीपक जलता था, झरोखे के तले,
उसका बुझना ठण्डी हवा के झोकों से,
फिर जलाना उसी दृढ़ उत्साह के साथ,
बहुत कुछ कहता था जीवन के किस्से,
जो मिश्रित थे कालिख प्रकाश की तरह,
वो इस दिल ने सभी श्रृंगारिक भावुक गाए,
जब हुई बरसात आँगन में, वो बीते दिन याद आए।।1।।
वो टिप-टिप बूँदों का गिरना सतत,
मिट्टी पर देता संघात के गहरे निशान,
वो बूँदें ने थी सबब के इरादे थे अनमोल,
उन इरादों में छिपी थी संघर्ष की परिमल,
उस परिमल की कथा थी बहुत जीवट,
उस कथा में भी कुछ चरित्र पाषाण नजर आए,
जब हुई बरसात आँगन में, वो बीते दिन याद आए।।2।।
उन बूँदों का बहता हुआ पानी रंगीन,
सिखाता जीवन भर चलते रहना है,
रुकना उसका महज एक छोटा पहलू,
उस पहलू में भी छिपे थे, कई नजारें,
उन नजारों में बजता ललित संगीत,
उस संगीत में भी जीवन के कई अफसाने नज़र आए,
जब हुई बरसात आँगन में, वो बीते दिन याद आए।।3।।
©अभिषेक पाराशर???????️????