【【{◆◆रेशमी रुमाल◆◆}】】
जिदर भी नज़र जाए बिखरा पड़ा है,
ये गुजरे वक़्त का कचरा,कतरा कतरा
हुआ पड़ा है.
खुशियों के फूल कभी देखे नही,गम
तन्हाइयों का दर्द,हर तरफ उड़ता रहा है।
बेरुखी बेईमानी की रेत पड़ती रही आँखों
में,बेवफ़ा शहर की गलियों का मकान
अकड़ा खड़ा है।
कुछ ना मिला ये ज़िन्दगी गुजार कर,खुले
पिंजरे में भी कैद रहे,किस्मत का हाल भी
एक कच्चा सा घड़ा है।
बेरहम सा था रिश्तों का सफर,ज़ख्मी दिल में
भी हर अपने ने अपनी अपनी तरफ से नुकीला
कील जड़ा है।
मोहब्बत की हवायें भी भर भर के सावन लायीं,
देकर सहारा हर रेशमी रुमाल ने रुलाया बड़ा है.