【【◆◆उड़ती पवन◆◆】】
मेरे बेचैन मन से कुछ कहती
उड़ती पवन,
इस गगन की और देख कर ढूंढ
रही क्यों सजन.
पिया तो तुझसे दूर है,क्या चुभ रही
तुझको जुदाई चुभन।
सांसों में लिए घबराहट सी,किस याद
में हुई तेरी सोच मगन।
ये इश्क़ तो तीर अचूक है,जब लग जाये
तो खेलते नयन।
राधा,मीरा होती फिर भावरीं,कान्हा के
ढूंढे फिर पद चिन्ह.
रात दिन एक राग से,बजती बंसरी फिर
एक धुन।
सूखे नैन सहरा इंतज़ार के,उम्मीद सी टूटे तो,
बरसते प्रतिदिन।