*~~【【◆तितर-बितर◆】】~~*
~~【【◆तितर-बितर◆】】~~
*तितर-बितर हुए पड़े हैं अल्फ़ाज़ लोगों के,
ईष्या क्रोध में जल रहे एहसास लोगों के.*
*कौन सुने किसी की तारीफ,खुद खुदा से
ऊपर लगते हैं आजकल जज़्बात लोगों के।*
*अकड़ का दामन आसमान तक फैला रखा,
नही अहमियत राख हुए पड़े संस्कार लोगों के.*
*नर नारी सब असभ्य हुए,आरोप प्रत्यारोप में
होकर पागल,एक दूसरे को नोचते आ रहे पंडाल
लोगों के।*
*मर्यादा नही अब किसी साहित्य में,विनम्र नही
कोई,लिखने बैठे हैं किस्से सारे चांडाल लोगों के।*
*शायरी,कवितायों का सहारा तो यूहीं ले रखा,कईं
तो डूबे रंगीन मिज़ाजी में,कई अपने मुँह ही बने हैं
कप्तान लोगों के।*
*भईया सब्र संतोष में ही जियो,ये कलम का मुँह
युहीं नही काला,मेरे दोस्त बहुत जला दिए इसने
गुमान लोगों के।*
*कौन क्या करता अमन तूने क्या लेना,छोड़ ये ज़माने
की भीड़,ये तो तमाशबीनों का शहर है,जानता हूँ तू
क़ातिल है,खुद में ही रह मस्त, क्यों हिला रहा तू ज़ालिम
आज इस बस्ती में मकान लोगों के।*