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4 May 2020 · 1 min read

【【{{{{सुनी मांग}}}}】】

कितने एहसास टूटते है जब एक औरत के
झुमके बिंदिया सिंदूर रूठते है.

होजाती है पल पल घड़ी एक चिता की आवाज़,
कितने ही दर्द फिर रो रो के फूटते है।

नही मिलती कोई पीड़ा इस दर्द से बढ़कर,
एक ज़मीन पर हजारों आसमान टूटते है.

रंगीन दुनिया पर पड़ जाता है पर्दा,जब सफ़ेद
चुनरी पे काले बादल सूखते है.

बदल जाता है दुनिया का नज़रिया,आवारा
आँखों से नाजाने कितने शरीफ घूरते है.

समझता नही कोई सुनी मांग का दर्द,ये तो
वही जानती है जिसके कितने सावन रोज
आँखों से छूटते हैं.

बेरहम होता है ये वक़्त कितना,जिनके भरी
जवानी में होते है सुहाग दूर,उसको ये ज़माने
वाले हज़ार टुकड़ो में नोचते है.

वैसे तो कहता है हर इंसान जागरूक खुद को,
फिर भी दे दिया जाता है एक दुखी जिंदगी
को मनहूसियत का खिताब,

नाजाने कितनी ही पंचायतों में कितने ही अनदेखे
तेज़ाब,आज भी भीड़ वाले एक विधवा पर फेंकते हैं।

Language: Hindi
6 Likes · 4 Comments · 551 Views
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