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ये अनजान रास्ते किधर जा रहे है,
लोग आ रहे है जा रहे हैं.
थक हार कर बैठ भी गए हम,
पर वक़्त के कदम न रुक पा रहे हैं।
हालत नही ये ज़िन्दगी की अच्छी,
नाम होकर भी मरने से घबरा रहे हैं।
न कर गुमान मेरे दोस्त चंद सांसों का,
मौत के झोंके खुद तेरी पीठ थपथपा रहे हैं।
लें जाएंगे ये एक दिन अपने जोर से तुझे तेरे
आखरी मुकाम तक,अभी तो बस ये तुझे
ज़िन्दगी की सैर करवा रहे हैं।
तारीख भरी पड़ी है दुनिया के रहनुमा बने थे जो,
आज सिर्फ किस्सों कहानियों में आ रहे हैं।
ये वक़्त नही सुनता किसी की,अमीर हो या गरीब,
राजा हो या फकीर,ये मौत के फरिश्ते सबको
आखरी पैगाम सुना रहे हैं।