Sahityapedia
Login Create Account
Home
Search
Dashboard
Notifications
Settings
28 Apr 2020 · 3 min read

【【{{{{कोहिनूर कहानी–बचपन}}}}】】

मेरे दिल की कहानी,
मेरी कलम की जुबानी.
हर दर्द से लेकर,
थोड़ी खुशियों की कहानी.

बचपन के दिन अच्छे थे,
हस्ते खेलते बच्चे थे,
हर लम्हा जिये,
छोटी छोटी अनबन थी,
दिल सच्चे थे।

मौज मस्ती हर तरफ थी,
नादानियों की बस्ती हर तरफ थी,
नंगे पांव से होकर,
साईकल पर मस्ती अलग थी।

स्कूल के दिन याद हैं,
क्लास के तमाशबीन याद हैं,
रोज मास्टर से पिटाई,
स्कूल से दौड़ा दौड़ाई,
आते जाते हाथापाई,
छोटी छोटी लड़ाई
लम्हा लम्हा याद है।

माँ बाप का प्यार भी,
दादा दादी का दुलार भी.
वो धूम मचाता हर त्यौहार,
होली के रंग दोस्तों के संग,
दोस्ती की लंबी कतार भी,
बचपन की हर यादगार भी।

वो मेहमानों का आना,
हमारा शरमाकर छुप जाना,
मेहमानों की मिठाई में सेंध लगाकर मिठाई चुराना,
रहता था इंतज़ार भी,मिल जाता कोई उपहार भी।

गर्मियों में मीठा पानी,
बरसात में खेल तूफानी.
हाथ में चपल पहन भागना,
गड्डों में जमा पानी में शैतानी.

दीवारों,छतों से कूदती,
वो बचपन की फौज थी.
ना थी कोई कपड़ों की चाहत,
एक निक्कर में ही मौज थी,

ठंडी ठंडी कुल्फी का मज़ा,
सस्ते कोल्डड्रिंक्स,लेमन का मज़ा.
फ्रूटी की ठंडक की बात,
तरबूज आम की सौगात,
मीठी मीठी छाछ,
वो क्या थी बात,वो क्या थी बात।

ईद की छूट्टी का आना,
पंद्रह अगस्त को देश भक्ति के गाने,
स्कूल में तिरंगा लहराकर,
बार बार बजते आज़ादी के तराने.

रक्षा बंधन की राखी,हर सखी थी साथी,
किसी की चोटी खींचना,किसी को चुड़ैल बताना.
रोज की यही बात थी,यही था दोस्ती का हक़ जताना।

रामलीला देखने का जोश,
मोहल्ले में ही रामलीला बनाकर,
छोटे रोल निभाना,खुद राम बन जाना,
वो छोटे तीर,वो छोटी तलवार मस्ती में चलाना.

गाँधी जयंती के बाद,दशहरे के मेले,
लगे रहते हर मिठाई,खिलौने के ठेले।

दीवाली की धूम न पूछो,
पटाखों की गूंज न पूछो,
पल पल आतिशबाजी संग,
आसमान में रोशन खेल न पूछो।

उड़ती तितलियों का दौर अलग था,
गलियों का शोर अलग था.
अलग थे खेल सारे,
कटी पतंग लूटने का नशा,
जमा थे खिलौनों के पिटारे,
कुछ मिट्टी के गोलक,गुड्डे गुड्डीयों के ख़िलारे।

कंचों से शाम गुजरती,
कहानियों से रात गुजरती,
सुबह के परांठो की महक,
लंच बॉक्स में दिन साथ गुजरती

शरारतों का जाल अलग था,
गलियों का ख्याल अलग था,
खेलने की ललक थी कितनी,
पेड़ों की डाल पर,धूप छाँव का दौर अलग था।

फिर शर्दियों की शुरुवात,
लंबी हो रही थी रात,
मुँह से निकलती भाप,
कच्चे एग्जाम थे पास.
मस्ती में फिर न कमी थी,
नंगे पांव फिर से,न कोई ठंडक की ज़मीं थी.

रिश्तेदारों में शादियां
कईं दिन चलती थी शादियां
नए कपड़ों में सजदज कर,
पहुँचते थे उनके घर।

शादियों के ढोल धड़ाके.
बाराती बन बन के नाचे,
चवन्नी अठन्नी की बरसात,
लूट लूट कर बन जाते थे खास।

कपड़े होगये थे भारी,
चलती रहती मारामारी,
फिर भी खेल कूद में मस्त थी,
हमारी बचपन की लारी,

गर्म चाय की तलब तब भी रहती,
गर्म जलेबी की चाहत थी रहती,
दिसंबर की सर्दी ठिठुर ठिठुर बहती.

दिसम्बर के तो चाव ही बड़े थे,
क्रिस्मस, नवबर्ष के इंतज़ार बड़े थे,
सांता के ड्रेस की खोज,जिंगलबेल्ल का शोज.
वो सर्दी की छुटियाँ,नाजाने कब गुजर गया वो दौर.

ढूंढे से नही मिलता अब,
नाजाने कब गुजर गया वो दौर,
नाजाने कब गुजर गया वो दौर.

वो बचपन का शोर,
नाजाने कब गुजर गया वो दौर,.

मासूम सा रोना,
वो घर का एक कोना,
वो आँखों को मलते मलते,
नन्हें कदमों पर चलते चलते,
नाजाने कब गुजर गया वो दौर
नाजाने कब गुजर गया वो दौर।

मेरे दिल की कहानी,
मेरी कलम की जुबानी,
बचपन तूफानी,एक कीमती निशानी,
एक कोहिनूर कहानी,
रहता था कदमों में जब ज़ोर,
मासूम सूरतों का न था कोई मोल.
नाजाने कब गुजर गया,
नाजाने कब गुजर गया वो दौर।

Language: Hindi
4 Likes · 2 Comments · 561 Views
📢 Stay Updated with Sahityapedia!
Join our official announcements group on WhatsApp to receive all the major updates from Sahityapedia directly on your phone.
You may also like:
मित्रता क्या है?
मित्रता क्या है?
Vandna Thakur
चार दिन की जिंदगी
चार दिन की जिंदगी
Karuna Goswami
..
..
*प्रणय*
प्रेम का सौदा कभी सहानुभूति से मत करिए ....
प्रेम का सौदा कभी सहानुभूति से मत करिए ....
पूर्वार्थ
"नेक नीयत"
Dr. Kishan tandon kranti
मिलने के समय अक्सर ये दुविधा होती है
मिलने के समय अक्सर ये दुविधा होती है
Keshav kishor Kumar
ಅನಾವಶ್ಯಕವಾಗಿ ಅಳುವುದರಿಂದ ಏನು ಪ್ರಯೋಜನ?
ಅನಾವಶ್ಯಕವಾಗಿ ಅಳುವುದರಿಂದ ಏನು ಪ್ರಯೋಜನ?
Sonam Puneet Dubey
प्रेम, अनंत है
प्रेम, अनंत है
हिमांशु Kulshrestha
पाती
पाती
डॉक्टर रागिनी
सितमज़रीफ़ी
सितमज़रीफ़ी
Atul "Krishn"
पत्थर जैसे दिल से दिल लगाना पड़ता है,
पत्थर जैसे दिल से दिल लगाना पड़ता है,
डॉ. शशांक शर्मा "रईस"
यह जो पापा की परियां होती हैं, ना..'
यह जो पापा की परियां होती हैं, ना..'
SPK Sachin Lodhi
किसान मजदूर होते जा रहे हैं।
किसान मजदूर होते जा रहे हैं।
रोहताश वर्मा 'मुसाफिर'
3521.🌷 *पूर्णिका* 🌷
3521.🌷 *पूर्णिका* 🌷
Dr.Khedu Bharti
मन से मन का बंधन
मन से मन का बंधन
Shubham Anand Manmeet
सरोवर की और बहती नदियों पर कभी भी विश्वास कर नहीं उतरना चाहि
सरोवर की और बहती नदियों पर कभी भी विश्वास कर नहीं उतरना चाहि
Jitendra kumar
मज़हब नहीं सिखता बैर 🙏
मज़हब नहीं सिखता बैर 🙏
तारकेश्‍वर प्रसाद तरुण
Love Is The Reason Behind
Love Is The Reason Behind
Manisha Manjari
हमारी सोच
हमारी सोच
Neeraj Agarwal
वन्दे मातरम वन्दे मातरम
वन्दे मातरम वन्दे मातरम
Swami Ganganiya
सोच
सोच
Shyam Sundar Subramanian
*पल  दो पल  मेरे साथ चलो*
*पल दो पल मेरे साथ चलो*
सुखविंद्र सिंह मनसीरत
कितने पन्ने
कितने पन्ने
Satish Srijan
पापा
पापा
Lovi Mishra
पीता नहीं मगर मुझे आदत अजीब है,
पीता नहीं मगर मुझे आदत अजीब है,
Kalamkash
इश्क़ में ज़हर की ज़रूरत नहीं है बे यारा,
इश्क़ में ज़हर की ज़रूरत नहीं है बे यारा,
शेखर सिंह
*मोती बनने में मजा, वरना क्या औकात (कुंडलिया)*
*मोती बनने में मजा, वरना क्या औकात (कुंडलिया)*
Ravi Prakash
जिंदगी में आप जो शौक पालते है उसी प्रतिभा से आप जीवन में इतन
जिंदगी में आप जो शौक पालते है उसी प्रतिभा से आप जीवन में इतन
Rj Anand Prajapati
रास्तों पर चलने वालों को ही,
रास्तों पर चलने वालों को ही,
Yogi Yogendra Sharma : Motivational Speaker
इश्क़ और चाय
इश्क़ और चाय
singh kunwar sarvendra vikram
Loading...