【विशुद्ध प्रेम से, वह परमपुरुष भी, रीझ जाता है】
स्नेहिल हूँ,
नहीं भी,
प्रमाण दूँ,
कुछ नहीं,
क्या कहूँ,
कुछ भी तो,
कहा,
क्यों कहा?
कहकर क्या मिला?
हल्का हुआ।,
कहाँ,
पेट पर,
हाथ पर,
सिर पर,
भाल पर,
पीठ पर,
नहीं नहीं,
भार को
मनुष्य रखता है,
हृदय पर अपने,
तो क्यों,कैसे उठाये उसे,
दुष्कर बड़ा,
दीर्घ कार्य,
नहीं हटे,
लगा हटाने में,
दस बीस,
आदमी,
नहीं फिर भी,
नहीं,
अब क्या करें,
कहूँ एक बात,
कान में,
तू सुनेगा,
कान में क्यों,
सीधे कहो,
प्रेम बाँट कर,
देखना,
तू कभी सच्चे,
हृदय से,
गीत तेरे जीवन का,
परिवर्तित हो जाएगा,
तू भारहीन हो जाएगा,
तू स्नेह से भर जाएगा,
क्यों पता है,
विशुद्ध प्रेम से,
वह परमपुरुष भी,
रीझ जाता है।
@अभिषेक पाराशर