【मानवता धँसती जाएगी】
मानवता और अधिक जमी
में धँसती जाएगी।
बस्ती इंसानों की जैसे जैसे
और बसती जाएगी।
बढ़ती जाएगी क्रूरता और
प्रेम भावना घटती जाएगी।
बुराइयों के ढेर बढ़ेंगे
अच्छाइयों की चट्टानें हिम की
भांति पिघलती जाएगी।
बढ़ता जाएगा नर संहार
आग जलन की लगती जाएगी।
फड़फड़ाएगा दिया क्रोध का लौ
अपनत्व की बुझती जाएगी।
खड़ी है जब तक फ़नकाढे
नागिन रूपी अमानवता
तब तक ये मानवता को
डसती जाएगी।
Viraz