⭐⭐सादगी बहुत अच्छी लगी तुम्हारी⭐⭐
सादगी बहुत अच्छी लगी तुम्हारी,
सादगी बहुत अच्छी लगी तुम्हारी,
ऑंखे भी मुस्कुराती हैं,
वो बातें करें जाती हैं,
होठों का मिलना सच में,
ख़्याल मिले मेरे और तेरे,
सभी बातें अच्छी लगी तुम्हारी,
सादगी बहुत अच्छी लगी तुम्हारी।।1।।
हाथ में जो तुमने पहना है,
वक्त का कंगन समझे,
ललचाती है अमावस,
तेरे काज़ल के तले,
‘बिन मुलाकात’के मुलाक़ात अच्छी लगी तुम्हारी,
सादगी बहुत अच्छी लगी तुम्हारी।।2।।
कानों के कुण्डल देख,
ठहर जातें हैं पक्षी,
मोर नाचे हैं सुनकर,
तेरी बातें सच्ची,
नज़रों की वो मार अच्छी लगी तुम्हारी,
सादगी बहुत अच्छी लगी तुम्हारी।।3।।
माथे पर लगी बिंदी चमके,
ऐसे जैसे सितारे चमके,
तेरे साड़ी का आँचल जो है,
वही है हवा का रुख,
पसीने की बरसात अच्छी लगी तुम्हारी,
सादगी बहुत अच्छी लगी तुम्हारी।।4।।
पाजेब जो छिपा रखी है,
वहीं हैं राज मोहब्बत के बसे दिल में
हैं जो महावर^ की लाल रेखाएँ,
वे गुलाबी बनाती हैं मौसम को,
मीठी बोली अच्छी लगी तुम्हारी,
सादगी बहुत अच्छी लगी तुम्हारी।।5।।
^आलता
©®अभिषेक पाराशर
कोई नहीं है टक्कर में,
हे रूपा! कहाँ फँसे हो चक्कर में