✴️✳️मेरे इश्क़ का मज़मून हो तुम✳️✴️
मेरे इश्क़ का मज़मून हो तुम,
मेरे इश्क़ का मज़मून हो तुम,
परछाईं बन संग संग चलो,
नजरों की ओट से तुम्हें देखूँ,
मेरे हाल पर अपनी नज़र डालो,
अंजाम दो अपने वादों को,
फिर क्यों कहूँ छूटा सवाल हो तुम,
मेरे इश्क़ का मज़मून हो तुम।।1।।
मैंने तुम्हारे लिए कहा सब ओर,
अपना भी कुछ कहो कभी,
बग़ावत कैसे करें पुरज़ोर,
तुम जो हम में हो समाए,
समाकर जलते हुए चिराग़ हो तुम,
मेरे इश्क़ का मज़मून हो तुम।।2।।
पूनौ को अमावस कैसे कह दें,
सितारों को आफ़ताब कैसे कह दें,
हमें जैसा बनाया है वैसे हैं,
तुम्हारे अन्दर छिपे किस्से कैसे-कैसे हैं,
हकीकत से रूबरू होने का सबब हो तुम,
मेरे इश्क़ का मज़मून हो तुम।।3।।
दगा लेना देना सब बराबर है जहाँ में,
सब जानकर भी तुम कहाँ, कहाँ मैं,
अफ़सोस ही बचेगा आपके हिस्से में,
मैं तो कहता रहूँगा अपने हिस्से का,
न मिल सका सीधा सा जबाब हो तुम,
मेरे इश्क़ का मज़मून हो तुम।।4।।
©®अभिषेक पाराशर