बड़ा ही सुकूँ देगा तुम्हें
मैंने इन आंखों से ज़माने को संभालते देखा है
।। श्री सत्यनारायण ब़त कथा महात्तम।।
प्रत्यक्षतः दैनिक जीवन मे मित्रता क दीवार केँ ढाहल जा सकैत
आंखों की चमक ऐसी, बिजली सी चमकने दो।
जिंदगी में संतुलन खुद की कमियों को समझने से बना रहता है,
कितनी ही गहरी वेदना क्यूं न हो
ऐ माँ! मेरी मालिक हो तुम।
चली लोमड़ी मुंडन तकने....!
singh kunwar sarvendra vikram
मेरे ख्याल से जीवन से ऊब जाना भी अच्छी बात है,
मशक-पाद की फटी बिवाई में गयन्द कब सोता है ?
यातायात के नियमों का पालन हम करें
बेटी पढ़ाओ बेटी बचाओ सब कहते हैं।
ख़ुशबू आ रही है मेरे हाथों से
‘ विरोधरस ‘---3. || विरोध-रस के आलंबन विभाव || +रमेशराज
आज दिवस है इश्क का, जी भर कर लो प्यार ।