✍️✍️ये बौनी!आँखों से गोली मार रही है✍️✍️
##कुछ भी##
##फालतू में##
##लिखकर रहेंगे,अल्हड़पन में ##
##कोटेक महिंद्रा मैसेज भेजकर अपना कायरपन, सिद्ध करती है##
##अभी तो बस शुरुआत है, विनाश की##
##डेढ़ फुटिया##
##हमारे असली रूप छिपे हैं अपनी पहचान नहीं देते किसी को##
##जरूरी भी नहीं##
ये बौनी!आँखों से गोली मार रही है।
आगे खड़ा है नमक का बोरा,
डाल रखा है व्हाइट चोला,
उसकी नज़र में सबसे अच्छी,
मैं तो कहूँगा सबसे सस्ती,
ऊपर डाला गमछा लाल,
बौनी की भी ड्रेस है लाल,
आँखों से चाट को चाट रही है,
ये बौनी!आँखों से गोली मार रही है।।1।।
दोनों लग रहे बौनी बौना,
कम था, पर ज़्यादा पड़ गया बिछौना,
दोनों का यदि करो मिलान,
गंजेपन में दोनों समान,
क्यों रे बौने!शादी में कार मिली है,
छोरी तुम्हें बीमार मिली है,
रूपा!गले में चुनरी डाल रही है,
ये बौनी!आँखों से गोली मार रही है।।2।।
पीछे नकली फूल खिले हैं,
घर के मेम्बर नहीं मिले हैं,
चक्कर लगता पहले से था,
और न जाने क्या-क्या न था?
गाँव की दावत नहीं दी गई,
फिर भी बौने को बौनी मिल गई,
चाकू जैसी धार धरी है,
ये बौनी!आँखों से गोली मार रही है।।3।।
बिछड़ जायेंगे दोनों पक्षी,
जैसे ठुककर होते कंचा-कंची,
इक पल भी बतिया न सकी रूपा,
बेकार गये रूपा के फूफा,
मिट जायेंगे जैसे यादें,
लौटाता हूँ अपने वादे,
मेरी शक्ति तुम्हें संहार रही है,
ये बौनी!आँखों से गोली मार रही है।।4।।
©®अभिषेक: पाराशरः