✍️हार और जित✍️
✍️हार और जित✍️
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हम चार कदम
आगे क्या चले आते है
कितना कुछ
पीछे छोड़ जाते है
मैंने वक़्त को
मुट्ठी में बांधने की
कही दफ़ा कोशिशें की
पर मैं हर बार नाकाम रहा…
सोचा कुछ पल,कुछ लम्हें
यादें बनकर साथ रहेगी
नहीं पूरी तो अधूरी सी
कुछ दिल के पास रहेगी
लेकिन यादें भी
आदतों की शिकार होती है
अच्छी हो तो जल्दी लगती नहीं
बुरी हो तो छूटते छूटती नहीं
अब यादों में सुकून कहाँ है
यादें तो दिल में पड़ा एक छाला है
जरासी चुभन पे आँसू निकालता है
वक़्त से उम्मीद थी
वो भी फिसलते रहता है
जरासी नजरअंदाजी पे
वो आगे निकल जाता है
बस जिंदगी से
एक ही गुजारिश है…
कुछ बची यादें
मुझे मेरे हार का सबब दे
और ये वक़्त
मुझे मेरे जित का सबक दे
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✍️”अशांत”शेखर✍️
23/06/2022