✍️स्कूल टाइम ✍️
मेरा स्कूल आकार में जितना बड़ा था,
उतनी ही गहरी उससे जुड़ी यादें है,
एक नहीं हजार किस्से है स्कूल के,
बताने को भी बहुत सारी बाते है,
ग्राउंड फ्लोर पर न. 8 क्लास थी हमारी,
जिसमे हम करते थे मस्तियाँ बहुत सारी,
सुबह स्कूल मे आते ही सारे खुश हो जाते थे,
मॉर्निंग असेंबली में सब प्रार्थना करके आते थे,
मैथ्स टीचर बड़े मन से पढ़ाते थे,
हिंदी टीचर को हम बड़ा सताते थे,
केमिष्ट्री के सर मज़ा दिलाते थे,
उनके रिऐक्शं से बच्चे लोट पोट हो जाते थे,
फिजिक्स की क्लास् आते ही हम लंच करने लग जाते थे,
सीधे साधे सर बस प्यार से समझाते थे,
इंग्लिश वाले सर बड़ी बड़ी बाते बताते थे,
देश, संस्कृति, धर्म, संस्कार सबकुछ समझाते थे,
खेल का घंटा आते थे सब मैदान दौड़ कर जाते थे,
कभी पेड़ की छाया मे अपनी बैठक बुलाते थे,
लंच टाइम में टोली हमारी जब भी बाहर निकलती थी,
सबके हँसने की आवाज़ें पूरे कॉर्रिडोर मे गूंजती थी,
पानी लेने के बहाने स्कूल घूम कर आये थे,
किसी का मैटर फँस जाए तो सब मिलकर सुलझाते थे,
टीचर हमारी टोली को पूरे दिल से मानते थे,
हम शरारती के साथ पढ़ाकू भी है अच्छे से पहचानते थे,
स्कूल की छुट्टी होते ही मन उदास हो जाता था,
हम भले घर आ जाए दिल वही रह जात था,
अब तो स्कूल की मस्तियाँ रह रहकर याद आती है,
खत्म हो गया स्कूल का सफर ये बातें बड़ा सताती है।
✍️वैष्णवी गुप्ता
कौशांबी