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9 Jul 2022 · 1 min read

✍️सोया हुवा शेर✍️

✍️सोया हुवा शेर✍️
……………………………………………………………//
मैं जहा खड़ा था मेरा अपना ही शहर था
एक रात क्या गुजरी हर जुबाँ में जहर था

मैं तो उसके फितरत से खूब वाकिफ़ था
मैं संज़ीदा था उसकी बात में जी हुजूर था

बहोत मायुस था वो जब पहुंचा मकाँ मेरे
चेहरे पे कुछ ओर था,पर हाथ में खंजर था

उसकी मासूमियत में छुपे थे राज वो गहरे
वो जितना चालाख था उतना ही शातिर था

मैंने सूरज से रोशनी मांगी उसके ही खातिर
मेरे उजालों पे उसने ढ़हा अंधेरो का कहर था

उसकी गीदड़ भभकिया लोमड़ी की चाले थी
उसे कहाँ मालूम अंदर भी सोया हुवा शेर था

‘अशांत’ सदाक़त से जिंदगी गुजार लेता वो
पर बातों का बतंगड़ बनाने में खूब माहिर था
………………………………………………………………//
✍️”अशांत”शेखर✍️
09/07/2022

*संज़ीदा-शांत
*सदाक़त-सच्चाई

3 Likes · 6 Comments · 493 Views
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