✍️शाम की तन्हाई✍️
✍️शाम की तन्हाई✍️
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कुछ बची खुशियाँ दुसरो को बाँट आया
मैं यादों के दरख़्तों की शांखे छाट आया
हमने काँटों में उलझे कही गुलाब चुने थे
मगर अब दर्द भरे हाथो को मैं काट आया
उसके मौसम के सारे इत्रएँ रूह में बसे है
खुशबु फैलाती हवाँओ को मैं समेट आया
जिंदा है तो गम की ये उदासी सताएगी हमें
मैं उसकी वो तस्वीरे कफ़न में लपेट आया
“अशांत”अब कोई सुबह रास आती नहीं
मैं शाम की तन्हाई में पीकर दो घूँट आया
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✍️”अशांत”शेखर✍️
17/07/2022