✍️वक़्त और रास्ते✍️
✍️वक़्त और रास्ते✍️
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बेदर्द जमानो की ठोकरों से
हमेशा इंसान गिरता आया है
हाँ मैंने तो वक़्त से सीख लिया है
हर ठोकर से रास्तो में संभलना कैसे…
मतलबी होते है वो लोग जो वक़्त को
इस्तेमाल करते है दुसरो को गिराने में
हाँ मैंने तो रास्तो को परख लिया है
हर गिरे हुओ को नजरअंदाज करके
हमेशा वक़्त के साथ चलना कैसे…
वक़्त और रास्तो का अज़ीब मेल है
इनके पहलुओ में जिंदगी का खेल है
ठोकरे लाख हो जिंदगी के रास्तो में
अगर वक़्त को इंसान बस में कर ले
तो सदूर मंझिलो के फासलों की क्या औकात है
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©✍️’अशांत’ शेखर✍️
06/09/2022