✍️रास्ता मंज़िल का✍️
अपनो को पराया और परायों को अपना मान लेते है,
अक्सर भटक जाते है हम उन रास्तों से जो हमे मंज़िल तक ले जाते है,
खुली आँखों से सपने देख आँख बंद कर सो जाते है,
अक्सर भटक जाते है हम उन रास्तों से जो हमे मंज़िल तक ले जाते है,
जो मकसद था हमारी ज़िंदगी का हम उसे ही भुला देते हैं,
अक्सर भटक जाते है हम उन रास्तों से जो हमे मंज़िल तक ले जाते है,
करके इरादे बुलंद सपनो की एक नयी उड़ान भरते है,
चलो लौट आते है उन रास्तों पर जो हमे मंज़िल तक ले जाते है।
✍️वैष्णवी गुप्ता
कौशांबी