✍️यूँही मैं क्यूँ हारता नहीं✍️
✍️यूँही मैं क्यूँ हारता नहीं ✍️
……………………………………………//
जिस राह मुड़ते है सब कदम
उस मोड़ पे मैं क्यूँ चलता नहीं
बिना आरजु के ये दिल किसी
की मोहब्बत में क्यूँ रहता नहीं
बेनाम रिश्तों से अपनापन
का हाथ यूँही बढ़ाने चला हूँ
एक शख्स मेरी रूह में पड़ा है
अपने अंदर मैं क्यूँ झांकता नहीं
बगैर इश्क़ के ही उलझनों का
सेहरा बांधे फिरते है लोग यहाँ
दुनिया की झूठे रस्म रिवाज़ो में
सब तो पड़े है मैं क्यूँ पड़ता नहीं
रोज आश के हौसले जुटाकर
लड़ता हूँ खुद ही अपने आपसे
बच्चो सी मेरी एक ज़िद के आगे
आखिर यूँही मैं क्यूँ हारता नहीं
………………………………………………//
©✍️”अशांत”शेखर✍️
26/07/2022