प्रतीक्षा अहिल्या की…….
सुकोमल हृदय से पाषाण शिला बनने का सफर…….
यकी मानें आसान नहीं होता …
सहते सहते घुटन की काई अस्तित्व बेनूर बनाती ..
नीर भरे नैन झूठी मुस्कान थी वो सजाती…
सुबकते हुए “अश्रु” लिहाफ को भिगोती थी जो कभी……
थक कर बाअ दब हिमखंड हो गई।…
आसान तब भी न था …..आसान अब भी नही …
सदियों से सहती “अहिल्या “की “प्रतीक्षा ” राघव तुमसे परिपूर्ण हुई ….घर घर पलती,घर घर रहती इस युग “अहिल्या ” आज भी बिन तुम अपूर्ण है…
✍️ पं अंजू पांडेय”अश्रु”