✍️मै कहाँ थक गया हूँ..✍️
✍️मै कहाँ थक गया हूँ..✍️
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नजाने किसके बोझ तले मैं यूँही झुक गया हूँ
ये रास्ते तो चल रहे है मैं ही तन्हा रुक गया हूँ
बेचना था हुनर मेरा दुनिया के भरे बाज़ार में
दाम ऐसा लगा के अब मैं ख़ुद ही बिक गया हूँ
कोई आरजु ना कोई मंझिल साथ ये तन्हाई है
ख़ामोश हूँ इसलिये वक़्त के आगे टिक गया हूँ
अब के मौसम की ये धुप मेरे लिए तेज चली है
मुड़ के देख मैं पेड़ के टहनियों सा सुक गया हूँ
मेरे चौखट के भीड़ में पराये भी बहोत थे मगर
अपनों के सारे छुपे इरादे नजर से ताक गया हूँ
ये जिंदगी के सारे रास्ते अज़ीब कश्मकश में है
किसी मोड़ पे फिर चलूँगा मै कहाँ थक गया हूँ
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©✍️”अशांत”शेखर✍️
27/05/2022