✍️बोन्साई✍️
✍️बोन्साई✍️
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कोई आरजु नहीं थी
फिर भी घर के आंगन मे
एक बीज बोकर आयी हूं…
कुछ पानी की बुँदे छिड़क देना
उसको भी धरती के बोझ से
बाहर निकलना है,समय लगेगा जरूर…
मै निकल आयी हूँ…
कल वो शिशु पौधा बाहर आयेगा
उसको तेज धूप से बचाना…
मैं चूल्हे की आँच में
मन ही मन झुलसी हूँ…
अभी उसकी शाखें बहोत कोमल है
उसको धुँवाधार बारिश
कठोर ओलों से संरक्षित करना
मैं तरसती रही साथ भीगने के लिये
सिर्फ ओलों की मार थी मेरे लिये…
मैं चार दिवारी में थी
चुल्हाचौका सँभालते रही
घर के लज़ीज़ जबाँ को परोसते रही
तुम उसे गमले में मत रखना
वृक्ष बनने देना,फलने फूलने देना
उसको ऊँचे आकाश को छूने देना
मैं तेरी चुभती छाँव के
गमले का बोन्साई पेड़ बनकर रह गयी थी…!
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✍️”अशांत”शेखर✍️
28/06/2022