✍️बचपन था जादुई चिराग✍️
✍️बचपन था जादुई चिराग✍️
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चलो फिर लौटकर आते है
मासूमियत भरे उस नन्हें बचपन में
झूठमूठ की गुड्डे गुड़ियो की शादी है
आओ खाना पकाते मिट्टी के बरतन में
चलो गीली रेत के घरौंदे बनाते है
ईंट पत्थर के पड़े गारे से दिवार उठाते है
झरने पोकर के बहते धारा को रोक कर
ठहरे पानी में कागज़ की नाव चलाते है
दोस्तों के साथ खेला करते थे अपने आँगन में
वो भँवरे वो तितलियां और आम की गुठलियां
हार जाते थे कितनी बार खेल डंडे गिलियो का
जित जाते थे कांच के कंचे,कांच की टूटी चूड़ियां
मिटायें नहीं मिटती वो मन की कोमल यादें
आओ जिद करते है बढ़ती उम्र को घटाने की
अब गुमशुदा रहते है बच्चे इन छोटे छोटे पलों से
चलो कोशिश करते है फासलो को मिटाने की
उमड़कर आते है वो बादल सारे बचपन के
बरसते है यादे बनकर अपने ही उमंगों से
कोई लौटा तो नहीं सकता दिन वो सुहाने..
अब जिनि भी चला गया है जादुई चिरागों से
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✍️”अशांत”शेखर✍️
03/07/2022