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14 Nov 2022 · 4 min read

✍️प्रेम की राह पर-71✍️

संवाद याद कर लेने की क्षमता परमात्मा ने बख़ूबी दी है और वह ईश्वर बड़े सरलता से अपने भक्त के स्वाभिमान की रक्षा करते हैं।तो डेढ़ फुटिया से शनिवार (12.11.2022)को हुए संवाद का बेहद मनोनुकूल तारतम्य रहा।चूँकि संवाद को ग्रहण करना, उसमें भी स्त्री के शब्द का घातक होना,विचारों में वीभत्सता और यह डर कि बात को भण्डारित करने की प्रक्रिया निश्चित ही मुझे यौन उत्पीड़न आदि के मुकदमे से कहीं परिचित न हो जाना पड़े,तो निश्चित ही जिस चरित्र की रक्षा के लिए,हनुमत कृपा से अब तक सुरक्षित रखा, डेढ़ फुटिया निश्चित ही पतन के द्वार तक पहुँचा देगी और उस जगहँसाई का व्यापारिक उन्माद लोगों के दिमाग़ से जहन तक का सफर कर विशुद्ध ताने के रूप में क्षुद्र संवाद के पारिश्रमिक के रूप में मिलेगा।जो नितान्त ठलुआ होने का दंश इस कारण से सभी जनों से देगा कि हे अभिषेक!तुम्हारा कोई कृत्य चरित्रहनन का न था तो इस अनावश्यक प्रकल्प में क्यों फँस गए।हनुमत कृपा से अनावश्यक समय नष्ट करने के प्रति अब तक उस डेढ़ फुटिया का कई स्थानों से विध्वंस कराने और करने के लिए नींव रखी जा चुकी है।यह नींव ऐसी नहीं है कि जिसमें कोई मानवीय शक्ति शामिल हो।सब अलौकिक शक्तियों के साथ है ।सब समय के साथ सम्पन्न हो जाएगा।मिठाई में जैसे खुरचन खुरच जाती है।रूपा और रूपकिशोर दोनों का हश्र शान्त बिखराब के साथ सम्पन्न हो जाएगा।हमें इस पर ग्लानि नहीं है।क्योंकि तटस्थ होकर अपना प्रथम स्नेह खोजते रहे।हमें पता था कि इस यात्रा में अनगिनत सत्कार, दुत्कार और विनोद का वातावरण मिलेगा।हँसी तो इस पर आती है कि वार्ता का चक्रव्यूह निश्चित ही फँसाने वाला हो सकता था।अतः नासिका के दाँये बायें स्वर पर ध्यान देते हुए शांत रखकर किसी स्त्री से पहली बात का ऐश्वर्य भोगा।पर वह डेढ़ फुटिया कि मैं प्रयागराज कभी गई ही नहीं,कभी लिटी चोखा खाया ही नही,हाँ रीकॉल हुआ कि आप वही इंसान है जिसने मुझे वाहियात सन्देश भेजे थे।हाँ तुम भी तो वही वाहियात हो जिसने 1 जनवरी 2021 को अपना फ्रेंड सजेसन दिया था और प्रयागराज वाले गुरुजी का जिक्र करते ही उनका भी फ्रेंड सजेसन दिया था(प्रति सुरक्षित है)हैं न कितना वाहियात।डेढ़ फुटिया के कथनों को अपने हल्की आवाज़ में उत्तर देते हुए और गहरी साँस लेते हुए सुना और सुना कि वह डेढ़ फुटिया किन विचारों से पूरित है।मुझे पता है डेढ़ फुटिया ने मेरे बारे में सब पता कर लिया था।कोई अलग तथ्य न जाग्रत हो रहे थे।बड़ी ही शान्ति से सब सहन किया।पर हाँ उसका यह कहना कि वह शिक्षक है और सिविल सेवा का मैन्स लिखा है,पूर्णतया नागवार गुजरा।क्योंकि डेढ़ फुटिया 12 वर्ष दिल्ली में रही और एक एग्जाम न निकाल सकी।हे भगवान तफ़री ली।कोई ऐसा उदाहरण न मिला कि जिससे यह सिद्ध हो जाता कि इसने,हाँ, हाँ डेढ़ फुटिया ने सिविल सेवा की तैयारी की होगी।अब क्या है कि डिग्री मिल जाएगी ताकते रहो, रूपकिशोर देख लेगा बचा खुचा।पर मेरा क्या होगा कालिया?कुछ नही।कल मंगलवार है,हनुमत सेना को भेज दिया जाएगा,जो कि पूर्व प्रार्थनीय है।कामुकता का लेशमात्र भी स्थान नहीं है और न हीं किसी स्त्री को कभी स्पर्श ही किया अभी तक और फिर दुनिया रंग बिरंगी है।इस नकली दुनिया में जाने क्या-क्या देखने नहीं मिला है।बहुत कुछ और दिल्ली में तो बिल्ली और बिलोटों को जानें क्या-क्या नहीं करते देखा।तो यह बिल्ली, डेढ़ फुटिया कौन से कम पड़ी होगी।भाई रूपा विद्युत है।एक दम।ऐसा लगा था कि महिला आयोग की अध्यक्ष बोल रही है।सही लो।हम कॉल रिकॉर्ड के डर से सॉरी सॉरी का प्यारे बोल बोलते रहे।पर हे डेढ़ फुटिया! हमारी सॉरी में प्रक्षिप्त ईलू छिपा था।सही लो।बहुत करंट था।भाषा में मुक्त इलेक्ट्रान इतने थे अभी भी विद्युत का संचार हो रहा है।भाई फुलरीन थी।पर हाँ सिविल सेवा का मैन्स न लिखा है।यह तो झूठ है।ऐसे जैसे आकाश में सुराख़ न हो सके है।समझी डेढ़ फुटिया।ईश्वर तुम्हे ऐसा दण्ड दे कि तुम्हें वह जिन्दगी भर कसक रहे।उसके लिए प्रयास जारी रखूँगा।हे मोमबत्ती!छोडूँगा नहीं।तुम्हारा शरीर रहेगा।रूह यहाँ रहेगी।ही ही ही।बहुत ग़लत जगह फँस गई हो डेढ़ फुटिया।अब तुम्हारे साथ वह सब होगा जो कुण्डलिनी शक्ति में हुआ।जाओ खींच लूँगा।भागो भागो।जाओ जाओ कहाँ जाओगे।छोडूँगा नहीं।शनै:शनैः लगे रहकर जैसे दीमक खा जाती है पेड़ को।तो तुम्हारा जीवन का पेड़ जड़ से काट दिया जाएगा।क्या काट दिया जाएगा?काट दिया।मानवीय सहयोग पर छलाँग लगाई जा रही है।है न।लगाओ।उस ईश्वर का खड़ग बख्शेगा नहीं।क्या लिखें?पर शब्दकोश कभी कम न होगा।मन की स्याही कभी न सूखेगी।पर हे डेढ़ फुटिया!तुम निरन्तर उस गुप्त प्रहार से पीड़ित रहोगी जिसे तुमने हल्का हल्का अनुभव किया।अब पूरे सुरूर के साथ शुरू होगा।निरन्तर और सतत।क्या करें?यह तो कहना ही है और करना ही है।10-15 जनें तुम्हें जो जानते हैं क्या वे गुप्त प्रहारों को रोक लेंगे।उनको और लपेटे में लूँगा।शांति से क्रान्ति हो जाएगी यहीं से।तुम अब इसे झेलो।फिर इस संसार में प्रमाण भी तो देने होते हैं।तुम्हारा प्रमाण मणिकर्णिका की एक योगिनी के रूप में रहेगा।
“तमेव शरणं गच्छ, सर्वभावेन भारतः”
हे भारत ! तुम सम्पूर्ण भाव से उसी (ईश्वर) की शरण में जाओ। उसके प्रसाद से तुम परम शान्ति और शाश्वत स्थान को प्राप्त करोगे।
हे डेढ़ फुटिया!तुम्हारे सिर को तरबूज़ की तरह खण्डित भी तो करना है।
जय श्री राम।

©®अभिषेक पाराशरः

Language: Hindi
Tag: लेख
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