✍️पुरानी रसोई✍️
✍️पुरानी रसोई✍️
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बचपन की रसोई मुझे याद है
वो पितल की थालियां
वो पितल की प्यालियां
दीवाल पर टंगी लकड़ी के
पाट पर सजी होती थी ।
थोड़े से बर्तन पूरे परिवार की
भूख और प्यास का ध्यान रखते थे।
मिट्टी के घर में मिट्टी का चूल्हा
उसके तीन खंदो पर हम सबका पेट पला।
चूल्हे का मुँह मुझे किसी किले के
महाद्वार जैसा प्रतीत होता था।
मिट्टी की सौंधी सौंधी खुशबु
चूल्हे पर ज्वार की रोटी सेंकती माँ
और थाली में परोसा बैंगनी भुर्ता
भूख की तड़प ऐसी बढाती थी
जैसे कही दिन से पेट खाली है…
वो रसोई के चूल्हे में धधकती आग
अब गैस की लाइटर में सिकुड़ गयी है।
मेरी पुरानी रसोई की तस्वीर देखकर
मॉड्यूलर किचन कैसे अकड़ गयी है।
पर वो नहीं जानती जायका चूल्हों का।
उसी रसोई में मिलन होता घर के दिलों का।
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✍️”अशांत”शेखर✍️
24/06/2022