✍️पिता:एक किरण✍️
✍️पिता:एक किरण✍️
…………………………………………………//
एक उँगली थाम कर
चला है वो अनुपम हाथ
जिसकी रेखाओं को है
बरसों के तजुर्बे का साथ
वो सिखाता है महान
पदचिन्हों पर चलने के गुर
सर्वोत्तम गुण पाने के लिये
नष्ट करता है अंदर का गुरुर
वो बताता है अतीत के पन्नो
में दर्ज जित और हार का अंतर
उबड़ खाबड़ रास्तो को पढ़ना है
और फिर चलना है आगे निरंतर
दुनिया के बड़े अज़ीब है रंग ढंग
पहचानना है अंदर बैठा छल कपट
अपनी गरिमा को संभालकर चल
दूसरों का ना देख पहले खुद से निपट
कभी कड़ी धुप है तो कभी नर्म छाँव
मौसम भी बदलते रहता है कालांतर
राह जिंदगी की कभी सीधी कभी टेढ़ी
जीवन नहीं चलता एक जैसा समांतर
एक उँगली पकड़कर चलता है वो
कठिन राह में गिरने से संभालता है वो
काल के मायूसी भरे गहरे अंधेरो में
उम्मीद की एक किरण बन जाता है वो
…………………………………………………//
✍️”अशांत”शेखर✍️
28/06/2022