✍️जेरो-ओ-जबर हो गये✍️
✍️जेरो-ओ-जबर हो गये✍️
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चंद बाते अखबारों की खबर हो गये
सरेआम मुलाकातें पर्दा नज़र हो गये
हमने एक रात की नींद क्या चुरायी
उनके ख़्वाब जेरो-ओ-जबर हो गये
धूल आँखों में थी आईना तो साफ़ था
इश्क़ में इतने क्यूँ वो बेख़बर हो गये
जाने क्या है ये मोहब्बत की तिश्नगी
एक चाँद के लिये वो तो अंबर हो गये
हैसियत नहीं है शाहजहां के इश्क़ सी..
फिर भी उनके लिये वो संगमरमर हो गये
“अशांत”आसमान में दूर एक धुँवा उठा है
ये साजिश समझने को हम बेसबर हो गये
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✍️”अशांत”शेखर✍️
04/07/2022