✍️जिंदगी का फ़लसफ़ा✍️
✍️जिंदगी का फ़लसफ़ा✍️
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हमने हजारो गम के वो दरिया पार किये है ।
हमने रास्ते में पड़े कुछ तो कम ख़ार किये है ।
‘शम’-ए-अंजुमन’ की परवाह हमें कहाँ थी
उनके ‘अस्क़ाम’ पे हमने पहले वार किये है ।
‘इस्राफ़’ मेरे आशियानें की सोच रहा है वो
उनकी ‘इश्रत’ की तमन्ना ज़ार ज़ार किये है।
उस ज़खीरे में जवाहर कम,खंज़र ज़्यादा थे
चलाये जो सीने में वो फ़ना हमने तीर किये है ।
उनके ख़्वार इरादो के हमेशा कायल थे हम
जिंदगी का फ़लसफ़ा,हम सबकी ख़ैर किये है ।
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✍️ “अशांत”शेखर✍️
21/06/2022
*शम’-ए-अंजुमन=महफ़िल की रौनक
*अस्क़ाम = बुराइयां, कमज़ोरियां
*इश्रत = आनन्द
*ख़्वार =दुष्ट
*ख़ैर= कुशल क्षेम, कल्याण, हित
*ज़ार ज़ार-बहोत ज्यादा