✍️जिंदगानी ✍️
एक दिन मैंने ज़िंदगी से पूछा,
कौन हो तुम? क्या नाम है तुम्हारा? ,
इस उठती हुई लहर का कहाँ है किनारा,
क्यों परेशान हो क्या नहीं है कोई सहारा,
बताओ ना क्या वजूद है तुम्हारा,
मेरी ज़िंदगी ने एक बड़ा ही प्यारा जवाब दिया,
एक दिन आसमान मे एक नई तितली उड़ रही थी,
एक नई दुनिया से वो जुड़ रही थी,
उड़ने का शौक था उसे,
पर किसी का तो खौफ था उसे,
बहुत कोशिश की उसने उड़ने की,
नई दुनिया से जुड़ने की,
पर सज़ा मिली उसे गलत दिशा में मुड़ने की,
गुम सी हो गयी उसके चेहरे की रौनक,
पर दोस्तों को देख चहक उठती है,
मानती है उन्हें अपना सहारा,
जिनके दर पे सारी दुनिया झुकती है,
खुश तो है पर दिल से नही,
खिलखिलाती तो है पर दिल से नहीं,
बहोत प्यार है उसे अपनो से,
पर अपनी ज़िंदगी से नही,
काट दिए है उसने अपने ही पर,
चलना है उसे अपनो के लिए,
जीने का इरादा भी नही था,
पर अब जी रही है उनके सपनो के लिए।
✍️वैष्णवी गुप्ता
कौशांबी