✍️चाँद में रोटी✍️
✍️चाँद में रोटी✍️
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मुझे मेरा ही हमशक़्ल दिखता है ओर कोई
आईने में तो मैं हूँ मगर दिखता है ओर कोई
चाँद में रोटी का अक़्स देखता है वो बच्चा
भूख की तड़प को यहाँ बेचता है ओर कोई
वो सजाकर गया है अश्क़ आँखों में बेहिसाब
चंद खुशियों के लिए फुसलाता है ओर कोई
रो पड़े है नासाझ जेहेन में ये बेसुरे साजोसुर
मेरे गझलो को दिल से गुनगुनाता है ओर कोई
तेज आँधी में शज़र पे बने घरौंदे बचाता रहा मैं
मौसम का ही ये ख़लल के उजाडता है ओर कोई
‘अशांत’ हँसकर उठाये है जिंदगी के बोझ सारे
इन कंधों पे सर रखकर यूँही रोता है ओर कोई
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✍️”अशांत”शेखर✍️
11/07/2022