✍️क्या यही है अमृतकाल…✍️
✍️क्या यही है अमृतकाल…✍️
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बरसती हुई ये मौसम की बारीश भी अगर मानने लगती जातियों को तो न जाने कौन-कौन फिर प्यासा ही मर गया होता
कितने पंछी परिंदों के घौंसले उजड़ते यहाँ रोज-हर रोज जो अगर इन दरख़्तों ने अपना धर्म हम तुम सा चुन लिया होता
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✍️’अशांत’ शेखर✍️
16/08/2022