✍️किताबें और इंसान✍️
✍️किताबें और इंसान✍️
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दुनिया जानने की सूझबूझ
परखने की जिज्ञासु समझ
उसी दिन से अंदर ही अंदर
विकसित होने लगी थी…
जिस दिन शिक्षा की
पाठशाला में किताबो के पन्ने
आपने पलटने शुरू किये थे…
सारी वर्णमालाये आपको
व्यवहारिक मूल्यों का सरल ज्ञान
जीवन के तथ्यों का तरल विज्ञान
समझा रही थी…
शब्द शालाये थी…
वाक्य विद्यालये थी…
पाठ्य महाविद्यालये थी…
एक किताब पूरी विश्वविद्यालय थी…
किताबे ज्ञान का अथांग महासागर थी
हर व्यक्तिमत्त्व का वैश्विक आकार थी
जीवन कसोटी का मजबूत आधार थी
उज्वल भविष्य के सपनो का साकार थी
किताब में मिले कुछ रोचक सत्य
पृथ्वी के ग्रुत्वाकर्षण के अलावा
इंसान के गिरने की वस्तुस्थितियां..
जड़त्व के वैज्ञानिक नियम और..
इंसान के दुर्गति की अवस्था में
कैसे होता है आमुलाग्र परिवर्तन…
किताबे आदमी नही बन सकती
पर किताबो ने इंसान बनाये है…
और इंसान किताबे बन सकते है..
किताबो ने इँसा के दर्द,गम,खुशियां,हँसिया,
रिश्ते,नाते,अपने,पराये,दोस्त,दुश्मन
सबको गले लगाया…
सारी वेदना,भावना,संवेदना,हारना,जितना,
गिरना,उठना सभी को
अपने अंदर बसाया…
किताब इंसान के संपूर्ण संघर्ष की जीवनगाथा…
किताब इंसान के संपूर्ण विकास की सत्यकथा…
कल अचानक बंद अलमारी में यूँही पड़ी हुई
धूल खाती किताबो ने आत्महत्या कर ली
और इल्ज़ाम भी आया खुद किताबो के सर …
साबित ये हुँवा के विज्ञान पढ़ाया खुदगर्ज़ इंसानो को
अब सजा-ए-जुर्म में उम्र से भी लंबी सारी किताबे क़ैद है
विज्ञान के एक खिलौने के अंदर…!
विज्ञान के एक खिलौने के अंदर…!
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©✍️”अशांत”शेखर✍️
29/07/2022