✍️कभी कभी
कभी कभी
रास्ते पैरोंतलों से
गुमसुम गुजर जाते है
कभी कभी
कदमो के भरोसे
हम मौन खड़े रह जाते है
कभी कभी
वक़्त छूट जाता है
हम खाली हाथों को मलते है
कभी कभी
जिस्म खाली हो जाता है
हम लकीरों को टटोलते है
कभी कभी
सृष्टि अवसर प्रदान करती है
मगर हम तक़दीरो को कोसते है
कभी कभी
हम अपने भीतर झांकते है
हम खुद ही अपने आप से
अंदर ही अंदर लड़ते रहते है…
कभी कभी
कश्मकश में पलते रहते है
समय की कसौटी पे चलते रहते है
किसी आस पर सदा.. निरंतर..
बस चलते रहते है… कभी कभी
……………………………………………………………//
✍️’अशांत’ शेखर
15/10/2022