✍️एक ख़्वाब आँखों से गिरा…
एक ख़्वाब आँखों से गिरा और
उठाने को वो भीड़ उमड़ पड़ी थी
मगर साँसे चलती रही ख्वाईशो
की और कोशिशें फिर से खड़ी थी
मैं दरबदर खुद की तलाश में
भटकता रास्तों में तन्हा गुमशुदा..!
पाँव ढूँढते रहे अरमानो के काफ़िलों
में निशां जिनसे मेरी वो यादें जुडी थी
कैसे बढ़ता मंझिलो की तरफ जो
उलझाती रही मेरे ही राहों को कई दफ़ा..
वैसे लड़ता रहा अपने ही आपसे मैं
पता था यहाँ हौसलों से साजिशें बड़ी थी
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©✍️’अशांत’ शेखर
03/11/2022