✍️अश्क़ का खारा पानी ✍️
✍️अश्क़ का खारा पानी ✍️
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अब नहीं होता बर्दाश्त मुझ से
घुट घुटकर जीना
और जीते जी मरना।
अब नहीं साहा जाता मुझसे
जित जित हारना
और हारकर पिछडना ।।
कही तो तूने सुकून का
दूर दरिया छोड़ा होगा ।
वहाँ अपने को मिलाने का
कोई तो जरिया छोड़ा होगा ।।
मैं वक़्त के समंदर में
कब तक उम्मीद के गोते लगाऊ ।
मैं आस के साहिल की रेत पर
कब तक नंगे बदन को तपाऊ ।।
कोई फलस्वरुप ना मोती मिले।
मिले तो सिर्फ अश्क़ का खारा पानी मिले ।।
सिर्फ अश्क़ का खारा पानी मिले…..!
ये खारा पानी ना सूखे गले की प्यास बुझाये ।
ना सुकून की कोई लहलहाती फसल पकाये ।।
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✍️”अशांत”शेखर✍️
18/06/2022