✍✍हरे जो मन की पीरों को, अगर कोई मित्र ऐसा हो✍✍
हरे जो मन की पीरों को, अगर कोई मित्र ऐसा हो,
हृदय वेदना को जो दूर कर दे, अगर कोई मित्र ऐसा हो,
समीप में बैठकर जो कभी-कभी गुफ़्तगू कर ले,
ज़माने की बुराई को आसानी से दफ़न कर दे,
बात करके जो सच्ची, दे कलेजे को ठण्डक,
अपनी मुस्कराहट से जो हँसा दे,अगर कोई मित्र ऐसा हो।।1।।
सिखाता रहे जो नई नई बातें प्रति क्षण क्षण,
अकिंचनो के वितरण को जो बचाए प्रति कण कण,
भला क्या है बुरा क्या है, इसकी भी बात करे जो,
व्यसनों के बुराई को,मन में आने ही न दे जो,
परम अर्थ की जो बातें करके, मन में नई स्फूर्ति जो भर दे,
हक़ीकत तो कहे कम से कम, अगर कोई मित्र ऐसा हो।।2।।
मार्ग की कठिनाइयों में सहयोग जो कर दे,
तसल्ली देकर जो थोड़ा कन्धे पर हाथ ही रख दे,
कठिनाईयों से जूझने की जो हिम्मत सिखा दे,
संकट हो अगर सम्मुख,उसे वह चूर यदि कर दे,
असत्य में यदि घिर जाएँ, तो सत्य को प्रगटा दे,
अरे मित्र “मैं हूँ ना” ही जो कह दे,अगर कोई मित्र ऐसा हो।।3।।
###अभिषेक पाराशर###