✍✍गम्भीर शब्द गूँजते✍✍
गम्भीर शब्द गूँजते,
विवेक को हैं ढूँढते,
प्रसंग तो यहाँ वहाँ,
उसे तो ढूँढते कहाँ,
सत्य के उस आधार में,
ईश के रूप साकार में,
जीवनवृत्त तो बहुत बड़ा,
ज्यों पुण्य से भरता घड़ा,
शब्द का यह जो जाल है,
पर मोती चुंगता मृणाल है,
ज्यों लक्ष्य के आवाहन में,
वीर, वाण धरता कमान में,
शब्द, सुरभि का पय है,
जो पीतवर्ण और स्वर्णमय है,
शब्द तो कृशन मय है,
ज्यों संसार राधामय है,
दुःख की अभिलाषा में सुख,
पर अधिक सुख,व्यर्थ दुःख,
प्रेमी की प्रणय याचना में,
परमवीर पुरुष की क्षमा में,
अज्ञात की खोज है शब्द,
सागर की मौज है शब्द,
निःशब्द जब होता यह नर,
मूढता का ही पड़ता असर।
***अभिषेक पाराशर***