✍✍काश्मीर का एक दरिंदा, नाजुक तन को कुचल गया✍✍
आह भी कैसे निकली होगी, उस बेटी से पीड़ा की,
कोमल तन पर उस कुत्ते ने जंजीरों से क्रीड़ा की,
तनिक भी रहम न उपजा दिल में,जो बालक पर ही बहक गया, काश्मीर का एक दरिंदा, नाजुक तन को कुचल गया।।1।।
जाने कब से ताक रहा था उस अबोध की आँखों को,
कैसे उस बहसी खूनी ने,जकड़ा उसके हाथों को,
शायद नर भक्षी था क्या वो ? जो बालक पर ही बहक गया,
काश्मीर का एक दरिंदा, नाजुक तन को कुचल गया।।2।।
क्या सूनसान था प्राँगण?या सब चुप हो बैठे थे,
आँखों से ओझल थी बच्ची, किस चमत्कार में खोए थे,
मित्र न था, था कोई कुत्ता, जो बालक पर ही बहक गया,
काश्मीर का एक दरिंदा, नाजुक तन को कुचल गया।।3।।
बेटी ही थी अभिशाप नहीं थी, कठुआ की वह निर्भया,
उस दानव का दिल नहीं काँपा,उसने जब यह अपराध किया,
क्या वह था कोई भेड़िया ? जो बालक पर ही बहक गया,
काश्मीर का एक दरिंदा, नाजुक तन को कुचल गया।।4।।
भीषण सिंहनाद और एक क्रान्ति की आवश्यकता है,
ऐसे खूनी,बहसी को हिजड़ा करने की आवश्यकता है,
फाँसी दो या खून खींच लो उस राक्षस का,जो बालक पर ही बहक गया,
काश्मीर का एक दरिंदा, नाजुक तन को कुचल गया।।5।।
###अभिषेक पाराशर###