✍✍आया है बसंत मेला✍✍
कू-कू करती कोयल बगीचे में,
फैला रही है बसंत की संदेशा
भौरे भी कर रहे मधुर गुंजन
मड़राने लगी है उपवन में तितलियाँ
बेर आम में आ गए बौर
सरसो , गेहू भी पक गयें
बच्चे आसमां में उड़ा रहे पतंग
सूरजमुखी भी लाली शाम देख रहे
गूंज रही है राग बसंत
रंग उत्सव में रंगी चहुँ दिशा
खुशनुमा है सुबह और शाम
धरती महकीहै ,आया है बसंत मेला
होने लगी है जोबन पुष्प कलियाँ
नयी कोंपल से सजी है डालियाँ
गांव की प्रकृति लग रही मंधुरा
धरती महकी है,आया है बसंत मेला
सुन्दर स्वर्ण कमल सरोवर में खिला
दुग्ध रौशनी लेके निकला है वेनिला
महकी है चंपा चमेली से आँगन
धरती महकी है आया है बसंत मेला
मंत्रमुग्ध है चाशमूम देख प्रकृति
धरती महकी है आया है बसंत मेला
सजने लगी है गांव के भी गोरियाँ
पिया मिलन का आया है मधुर बेला
पुरवईया से हुई शाम रूमानी
चुनरी लहराती आ रही प्रिया
धरती महकी है ,आया है बसंत मेला
पिया मिलन का आया है मधुर बेला
विहाना लगे प्यारी, दोपहर कड़ी रसमिका
कुदरत के मेहर की है कलिका
पलास गुलरंग लेके फागुन आया
गुलमोहर से सजी है सड़क गलियाँ
कवि:- दुष्यंत कुमार पटेल”चित्रांश”